अनगिनत तारे फलक पे छाये हैं,
कुछ उसि तरह जैसे दीद मैंने तेरे पाये हैं,
अब है... और अब नही।
पर मैं भी कुछ बेबस सा हूँ,
छत पर खड़ा देखता हूँ इनको, पर छु नही सकता,
कितना छोटा है मेरा कद जो मुझे इन तक पहुँचा नही सकता,
छत पे उतारा हैं मैंने इनको, एक पानी भरे थाल में- अनुषा,
जानता हूँ, यह सिर्फ़ छलावा है, पर फासला तो कम हुआ...
उसि तरह एक दिन वो फासला भी कम होगा जो सेहरा की तरह छाया हे ...
हम दोनों के बीच...
बस सिर्फ़ इतना देखना को हो ना यह छलावा....
कुछ उसि तरह जैसे दीद मैंने तेरे पाये हैं,
अब है... और अब नही।
पर मैं भी कुछ बेबस सा हूँ,
छत पर खड़ा देखता हूँ इनको, पर छु नही सकता,
कितना छोटा है मेरा कद जो मुझे इन तक पहुँचा नही सकता,
छत पे उतारा हैं मैंने इनको, एक पानी भरे थाल में- अनुषा,
जानता हूँ, यह सिर्फ़ छलावा है, पर फासला तो कम हुआ...
उसि तरह एक दिन वो फासला भी कम होगा जो सेहरा की तरह छाया हे ...
हम दोनों के बीच...
बस सिर्फ़ इतना देखना को हो ना यह छलावा....
2 comments:
sexy....
Zhakaas...
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